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थेलेसीमिया: रोग के लक्षण, कारण और इलाज

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार भारत देश में हर वर्ष सात से दस हजार थेलेसीमिया पीडि़त बच्चों का जन्म होता है। केवल दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही यह संख्या करीब 1500 है। भारत की कुल जनसंख्या का 3.4 प्रतिशत भाग थेलेसीमिया ग्रस्त है।

लेख विभाग
May 09 2022 Updated: May 09 2022 22:54
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थेलेसीमिया: रोग के लक्षण, कारण और इलाज प्रतीकात्मक चित्र

थेलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।

लाल रक्त कोशिकाएं (RBC) शरीर की सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुंचाती हैं। कोशिकाओं लिए ऑक्सीजन एक प्रकार का पोषण है। ऑक्सीजन (oxygen) की सहायता से कोशिकाएं कार्य करती हैं। जब पर्याप्त स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं नहीं होती हैं, तो शरीर की बाकी कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती है, जिससे व्यक्ति थका हुआ, कमजोर या सांस लेने में तकलीफ महसूस कर सकता है। इस स्थिति को एनीमिया कहा जाता है। थेलेसीमिया पीड़ित लोगों को हल्का या गंभीर एनीमिया (anemia) हो सकता है। गंभीर एनीमिया अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है और मृत्यु का कारण बन सकता है।

थेलेसीमिया को कभी-कभी अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे कि कॉन्स्टेंट स्प्रिंग, कूली का एनीमिया, या हीमोग्लोबिन बार्ट्स हाइड्रोप्स भ्रूण। ये नाम कुछ थैलेसीमिया के लिए विशिष्ट हैं; उदाहरण के लिए, कूली का एनीमिया बीटा थैलेसीमिया मेजर के समान है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार भारत देश में हर वर्ष सात से दस हजार थेलेसीमिया पीडि़त बच्चों का जन्म होता है। केवल दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही यह संख्या करीब 1500 है। भारत की कुल जनसंख्या का 3.4 प्रतिशत भाग थेलेसीमिया ग्रस्त है।

 

थेलेसीमिया के लक्षण – Symptoms of Thalassemia

  • बच्चों के नाख़ून और जीभ पीला पड़ जाना
  • पीलिया जैसे लक्षण दिखना
  • बच्चे के जबड़ों और गालों में असामान्यता दिखाई पड़ना
  • बच्चे का शारीरिक विकास रुक जाना
  • वजन नहीं बढ़ना
  • हमेशा बीमार नजर आना
  • कमजोरी
  • सांस लेने में तकलीफ
  • चेहरा सूखा दिखना

 

थेलेसीमिया के प्रकार – Kind of Thalassemia

थेलेसीमिया में आनुवांशिकता का ऑटोसोमल रिसेसिव (autosomal recessive) पैटर्न होता है। इस रोग का फिलहाल कोई इलाज नहीं है। हीमोग्लोबीन दो तरह के प्रोटीन से बनता है अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन। इन प्रोटीन में ग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में खराबी होने से ही थैलीसीमिया होता है। जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं तेजी से नष्ट होती है। रक्त की भारी कमी होने के कारण रोगी के शरीर में बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। रक्त की कमी से हीमोग्लोबिन (haemoglobin) नहीं बन पाता है।  एवं बार-बार रक्त चढ़ाने के कारण रोगी के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है, जो हृदय, यकृत और फेफड़ों में पहुँचकर प्राणघातक होता है। मुख्यतः यह रोग दो वर्गों में बांटा गया है:

 

मेजर थेलेसीमिया - Major Thalassemia

यह बीमारी उन बच्चों में होने की संभावना अधिक होती है, जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलीसीमिया होता है। जिसे थैलीसीमिया मेजर कहा जाता है।

 

माइनर थेलेसीमिया - Minor Thalassemia

माइनर थेलेसीमिया उन बच्चों को होता है, जिन्हें प्रभावित जीन माता-पिता दोनों में से किसी एक से प्राप्त होता है। जहां तक बीमारी की जांच की बात है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर रक्त जांच के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।

कंपलीट ब्लड काउंट (Complete blood count) यानि सीबीसी से रक्ताल्पता या एनीमिया का पता लगाया जाता है। एक अन्य परीक्षण जिसे हीमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफोरेसिस कहा जाता है से असामान्य हीमोग्लोबिन का पता लगता है। इसके अलावा म्यूटेशन एनालिसिस टेस्ट (MAT) के द्वारा एल्फा थैलीसिमिया की जांच के बारे में जाना जा सकता है। मेरूरज्जा ट्रांसप्लांट (bone marrow transplant) से भी इस बीमारी के उपचार में मदद मिलती है।

यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थेलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थेलेसीमिया हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है। किन्तु माता-पिता में से एक ही में माइनर थेलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। यदि माता-पिता दोनों को माइनर रोग है तब भी बच्चे को यह रोग होने के 25 प्रतिशत संभावना है। अतः यह अत्यावश्यक है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों अपनी जाँच करा लें।

 

थेलेसीमिया का पहचान - Diagnosis of Thalassemia

  • रक्त परीक्षण-पूर्ण रक्त गणना (CBC)
  • थेलेसीमिया के अल्फा या बीटा प्रकार को परिभाषित करने के लिए हीमोग्लोबिन परीक्षण

कंपलीट ब्लड काउंट (Complete blood count) यानि सीबीसी से रक्ताल्पता या एनीमिया का पता लगाया जाता है। एक अन्य परीक्षण जिसे हीमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफोरेसिस कहा जाता है से असामान्य हीमोग्लोबिन का पता लगता है। इसके अलावा म्यूटेशन एनालिसिस टेस्ट (MAT) के द्वारा एल्फा थैलीसिमिया की जांच के बारे में जाना जा सकता है। मेरूरज्जा ट्रांसप्लांट (bone marrow transplant) से भी इस बीमारी के उपचार में मदद मिलती है।

 

थेलेसीमिया का उपचार - Treatment of Thalassemia

1. रक्त चढ़ाना - Blood transfusion

थेलेसीमिया का उपचार करने के लिए नियमित रक्त चढाने की आवश्यकता होती हैं। कुछ रोगियों को हर 10 से 15 दिन में रक्त चढ़ाना पड़ता हैं।

2. चीलेशन थेरेपी - Chelation therapy

बार-बार रक्त चढाने से और लौह तत्व की गोली लेने से रोगी के रक्त में लौह तत्व की मात्रा अधिक हो जाती हैं। लीवर, स्पीलिन, तथा ह्रदय में जरुरत से ज्यादा लौह  तत्व जमा होने से ये अंग सामान्य कार्य करना छोड़ देते हैं। रक्त में जमे इस अधिक लौह तत्व को निकालने के प्रक्रिया के लिए इंजेक्शन और दवा दोनों तरह के ईलाज उपलब्ध हैं।

3. बोन मेरो ट्रांसप्लांट - Bone marrow transplant

बोन मेरो ट्रांसप्लांट और स्टेम सेल का उपयोग कर बच्चों में इस रोग को रोकने पर शोध हो रहा हैं। इनका उपयोग कर बच्चों में इस रोग को रोका जा सकता हैं।

 

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