बर्लिन। कुछ ही दिनों पहले जर्मनी में जी7 की बैठक आयोजित हुई थी। दुनिया भर के नेताओं ने इस शिखर सम्मेलन की अपनी अंतिम घोषणा में संकल्प लिया, "हम मानव तस्करी के खिलाफ अपनी लड़ाई को मजबूत करने के साथ-साथ ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से दुनिया भर में बच्चों को यौन शोषण से बचाने और उनका मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
बाल यौन शोषण से पीड़ित लोगों के समूह ‘ब्रेव मूवमेंट' (Brave Movement) से जुड़ी विबके मूलर ने इसे ऐतिहासिक कदम बताया। उन्होंने कहा, "जब मैं छोटी बच्ची थी, तो मुझे किसी ने यौन हिंसा से नहीं बचाया। आज पहली बार, जी7 (G7) के नेताओं ने सामूहिक तौर पर बच्चों (children) की सुरक्षा करने का संकल्प लिया है, जो सभी बच्चों के लिए जरूरी है।”
जर्मनी में बाल यौन शोषण (Child sexual abuse) के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है। फेडरल क्रिमिनल पुलिस ऑफिस (बीकेए) के अनुसार, पिछले साल जर्मनी में हर दिन औसतन 49 नाबालिगों के साथ यौन हिंसा हुई। जारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में 14 साल से कम उम्र के 17,704 बच्चे यौन हिंसा का शिकार हुए। इनमें से 2,281 की उम्र छह साल से कम थी. वहीं, 2020 में यह आंकड़ा 16,990 था।
हाल ही में देश के पश्चिमी हिस्से में मौजूद कोलोन शहर से थोड़ी दूर पर स्थित वेर्मेल्सकिर्शेन (Vermelskirchen) में बाल यौन शोषण से जुड़ा एक मामला सामने आया। माना जा रहा है कि बच्चों की देखभाल करने वाले एक 44 वर्षीय पुरुष ने 12 छोटे बच्चों का यौन शोषण किया। इनमें दिव्यांग बच्चे (children with disabilities) भी शामिल थे। सबसे छोटे बच्चे की उम्र महज एक महीने रही होगी।
पुलिस ने इस आरोपी को गिरफ्तार किया है और इसके कंप्यूटर (computer) को जब्त कर लिया है। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि उसने पैसे लेकर 70 से अधिक लोगों के साथ बच्चों के दुर्व्यवहार से जुड़ी तस्वीरें और वीडियो (videos) को शेयर किया है। इस मामले में अभी भी जांच जारी है। नॉर्थ राइन वेस्टफालिया (North Rhine-Westphalia) राज्य में पुलिस ने यौन शोषण से जुड़े कई बड़े नेटवर्क का खुलासा किया है। कुछ अपराधी भी पकड़े गए हैं।
बाल यौन शोषण (sexual abuse) से जुड़े मामलों की देखरेख के लिए जर्मन सरकार ने नए स्वतंत्र आयोग का गठन किया है। इस आयोग की प्रमुख केस्टिन क्लाउस ने डीडब्ल्यू को बताया, "वेर्मेल्सकिर्शेन मामला इस तथ्य को दिखाता है कि डिजिटल मीडिया के प्रसार की वजह से, वीभत्स तरीके के हिंसा के मामले पहले की तुलना में ज्यादा सामने आ रहे है. हालांकि, डार्कनेट के इस्तेमाल से पहले भी ऐसी घटनाएं होती थीं। बस कल और आज में फर्क यह है कि आज हम साबित कर सकते हैं कि हिंसा हुई है।”
बाल यौन शोषण मामले में तेज कार्यवाही की जरूरत - Need to act fast in child sexual abuse case
पीड़ितों और अपराधियों को ढूंढना कोलोन पुलिस के साइबर क्राइम टास्क फोर्स का काम है। इसका नेतृत्व मार्कुस हाटमन करते हैं। वे एक वकील हैं। इन्होंने पिछले दो वर्षों में लगभग 9,900 संदिग्धों के खिलाफ 9,300 से ज्यादा मामले दर्ज किए हैं।
ऑनलाइन यौन हिंसा (online sexual violence) के बारे में कई सूचनाएं अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रेन (NCMEC) से मिलती हैं। हाटमन के लिए जरूरी चीज यह है कि अपराधियों की तुरंत पहचान कर ली जाए, लेकिन उन्होंने कहा कि आईपी अड्रेस का पता चलने के काफी समय बाद जांचकर्ताओं को इसकी सूचना मिलती है। इस वजह से, देश की गृह मंत्री नैंसी फेजर ने ऐसे कदमों का समर्थन किया है जिसके तहत इंटरनेट की सेवा देने वाली कंपनियों को आईपी अड्रेस से जुड़ी जानकारी को लंबे समय तक सुरक्षित रखना होगा।
बाल यौन शोषण के भारी भरकम आंकड़े - Huge statistics of child sexual abuse
कमिश्नर क्लाउस इस बात पर जोर देती हैं कि पीड़ित ‘अक्सर महीनों और कई वर्षों तक उत्पीड़न करने वाले पर निर्भर होते हैं।‘ कभी-कभी उत्पीड़न करने वाला उनके परिवार का ही कोई सदस्य होता है, तो कभी उनका काफी नजदीकी व्यक्ति. वह कहती हैं कि रिपोर्ट नहीं किए गए मामलों की संख्या मौजूदा ज्ञात आंकड़ों के मुकाबले कई गुना ज्यादा हो सकती है। वह इसे ‘स्कैंडल' बताते हुए कहती हैं कि यह नहीं पता कि अभी और कितने मामलों की जानकारी सामने नहीं आयी है।
आयोग की प्रमुख केस्टिन क्लाउस
क्लाउस को सलाह देने वाले पीड़ितों ने बताया कि यौन हिंसा (sexual violence) ‘अपराधियों के लिए सबसे सुरक्षित अपराधों में से एक है।‘ जांच के दौरान ही दो-तिहाई मामले बंद हो जाते हैं, खासकर उस स्थिति में जब अपराध (crime) करने वाले लोगों के बयान के सामने पीड़ितों के बयान को तवज्जो नहीं दी जाती।
हाटमन ने कहा कि वेर्मेल्सकिर्शेन में 30 से अधिक टेराबाइट डेटा जब्त किया गया था। एनआरडब्ल्यू साइबर अपराध इकाई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल (artificial intelligence tools) का इस्तेमाल करती है। इसकी मदद से, बच्चों के साथ दुर्व्यवहार से जुड़ी 90 फीसदी तस्वीरों की पहचान हो सकती है। इससे जांचकर्ता काफी कम समय में ज्यादा डेटा का विश्लेषण कर यह पता लगा पाते हैं कि क्या मौजूदा समय में किसी बच्चे के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है या नहीं। हालांकि, इन सब तस्वीरों और वीडियो की जांच इंसानों को ही करनी होती है, इसलिए ज्यादा कर्मचारियों और टूल की जरूरत है।
बाल यौन शोषण पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत - Need for international cooperation on child sexual abuse
आंकड़े बताते हैं कि यूरोप बाल शोषण से जुड़ी तस्वीरों का केंद्र बन गया है। इसलिए, क्लाउस ने यूरोपीय आयोग (European Commission) के उस कदम का स्वागत किया है, जिसके तहत राष्ट्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों की संख्या बढ़ाने के लिए ईयू में एक सेंटर की स्थापना करने की योजना है। साथ ही, यूरोपीय आयोग ने पीड़ितों को राहत पहुंचाने के उद्देश्य से दुर्व्यवहार वाली तस्वीरों को हटाने की भी योजना बनाई है।
मार्कुस हाटमन भी चाहते हैं कि इस मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ना चाहिए। वह कहते हैं, "बाल्टिक देशों (Baltic countries) में मौजूद विशेष रूप से प्रशिक्षित साझेदारों के साथ काम करने से सफलता मिली है. कभी-कभी जर्मनी के सीमावर्ती देशों की तुलना में यूरोप की सीमा से बाहर के अन्य देशों के साथ तेजी से सहयोग मिलता है।”
कमिश्नर क्लाउस कहती हैं, "पिछले कुछ सालों में जागरूकता बढ़ी है, लेकिन अभी भी बहुत सारे लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि यौन शोषण की समस्या उनके आसपास के बच्चों को प्रभावित करती है। हम सभी पीड़ितों को जानते हैं, इसलिए हम अपराधियों को भी जानते हैं।”
बाल यौन शोषण के आघात से छोटी हो सकती है जिंदगी - Life can be shortened by the trauma of child sexual abuse
मनोवैज्ञानिक माथियास फ्रांत्स ने बाल शोषण के शिकार लोगों के साथ काम किया है। वह बताते हैं कि नवजात शिशुओं के दिमाग में भी उन घटनाओं की यादें हमेशा के लिए बैठ जाती हैं। उनके मस्तिष्क के एक विशेष हिस्से में डर और दर्द होता है।
फ्रांत्स बताते हैं, "अगर मैंने बचपन में बुरी चीजों का अनुभव किया, तो 40 साल बाद भी वे यादें ताजा हो सकती हैं। अगर मेरा बॉस मुझे डांटने वाली नजरों से देखता है, तो इससे मुझे यह याद आ सकता है कि मेरे पिता ने मुझे पीटने से पहले कैसे देखा था।”
वह आगे कहते हैं, "ऐसी स्थिति में तनाव बढ़ाने वाला हार्मोन रिलीज होता है। इससे पैनिक अटैक आ सकता है और दिल के दौरे के वजह से अस्पताल में जिंदगी खत्म हो सकती है।” फ्रांत्स कहते हैं कि अक्सर ऐसे मरीजों को फिर से घर भेज दिया जाता है। अगर वे भाग्यशाली रहे, तो डॉक्टर पैनिक अटैक (panic attacks) का इलाज करने के बाद, उन्हें मनोचिकित्सक (psychiatrist) से परामर्श लेने का सुझाव दे सकते हैं।
वह आगे कहते हैं, "हमने गंभीर रूप से दुर्व्यवहार का सामना करने वाले बच्चों की स्थिति को लेकर लंबे समय तक किए गए अध्ययन की समीक्षा की है। इससे पता चलता है कि इनके मानसिक तौर (mentally ill) पर बीमार होने या नशे के आदी (addicted to drugs) होने की संभावना अधिक होती है। अध्ययन से यह बात भी सामने आयी है कि ऐसे बच्चों कि जिंदगी 20 साल तक कम हो सकती है।” फ्रांत्स का मानना है कि वयस्क पीड़ितों के लिए इलाज की सुविधा आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए।
बाल यौन अपराधियों पर शोध की ज़रुरत - Need for research on child sex offenders
जब अपराधी बेनकाब होते हैं, तो उनके सहयोगी और पड़ोसी अक्सर टिप्पणी करते हैं कि इन्हें देखकर तो ऐसा लगता ही नहीं था। मनोवैज्ञानिक माथियास फ्रांत्स बताते हैं कि कई अपराधियों में सहानुभूति की कमी होती है और वे कमजोर लोगों पर दबदबा बनाना चाहते हैं। वह कहते हैं, "ऐसा करके कुछ लोगों को एहसास होता है कि वे सबसे ज्यादा शक्तिशाली हैं।”
इंटरनेट (Internet) की खुली दुनिया ऐसे मामलों को बढ़ाने का काम करती है। एक-दूसरे के अपराधों को देखकर अपराधियों को ऐसा लगता है कि वे सही काम कर रहे हैं। फ्रांत्स कहते हैं, "हमें इस पर और अधिक शोध करने की जरूरत है। अपराधी ऐसे कैसे हो जाते हैं? क्या इसका इलाज किया जा सकता है?”
बाल यौन शोषण की रोकथाम और सुरक्षा - Prevention and protection of child sexual abuse
हाटमन की साइबर क्राइम टास्क फोर्स संभावित अपराधियों को चेतावनी देने के लिए सार्वजनिक सूचना अभियान भी चलाती है कि गलत काम करने पर वे पकड़े जा सकते हैं। जांचकर्ताओं ने यौन शोषण की रोकथाम के लिए कुछ कंटेंट भी तैयार किए हैं। इसके जरिए बताया गया है कि ग्रूमिंग क्या होती है। साथ ही, इसमें यह भी जानकारी दी गई है कि किस तरह कोई अपराधी पहले किसी बच्चे के साथ संपर्क करता है, ताकि लंबे समय तक उसके साथ दुर्व्यवहार करने के लिए दबाव बना सके।
क्लाउस कहती हैं, "बच्चों, शिक्षकों और माता-पिता को शिक्षित करना महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही डिजिटल प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल के लिए भी नियम बनाने चाहिए, जैसे, सुरक्षा से जुड़ी डिफॉल्ट सेटिंग, मदद की पेशकश की सीमा तय करना, उम्र से जुड़ी पाबंदियां, वेबसाइटों का मॉडरेशन वगैरह क्योंकि बच्चे यहां अकेले होते हैं।”
वह इस साल के अंत में एक अभियान शुरू करना चाहती हैं, ताकि लोगों को पता चले कि बच्चों को दुर्व्यवहार से बचाने में मदद कहां मिलेगी। यह ठीक उसी तरह है जैसे उन्हें पता रहता है कि आग लगने पर फायर अलार्म कहां से चालू किया जाता है।
सौजन्य से - बच्चों को यौन-शोषण से बचाने के लिए क्या कर रहा जर्मनी और यूरोपीय संघ
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