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कोरोना महामारी के कारण नर्सों की भारी कमी से जूझ रहा विश्व, अमीर देश गरीब देशों की नर्सों की कर रहे नियुक्ति

कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के आने के बाद धनी देशों ने गरीब देशों से नर्सों की भर्ती को तेज कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों का कहना है कि यह चलन गरीब देशों को भारी पड़ रहा है।

एस. के. राणा
January 25 2022 Updated: January 25 2022 23:53
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कोरोना महामारी के कारण नर्सों की भारी कमी से जूझ रहा विश्व, अमीर देश गरीब देशों की नर्सों की कर रहे नियुक्ति प्रतीकात्मक

नई दिल्ली (रायटर)। कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के आने के बाद धनी देशों ने गरीब देशों से नर्सों की भर्ती को तेज कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों का कहना है कि यह चलन गरीब देशों को भारी पड़ रहा है। 

 कोविड महामारी ने अमीर और गरीब सभी देशों में स्वास्थ्यकर्मियों की भयानक परीक्षा ली है इसलिए लगभग सभी देश स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से जूझ रहे हैं। हालत ऐसी है कि अस्पताल अपने कर्मचारियों की छुट्टियों पर ना जाने और ज्यादा देर काम करने की गुजारिश करते रहते हैं, जो पिछले दो साल से चल रहा है। इस परेशानी का हल धनी देशों ने गरीब देशों में खोजा है।

इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज (ICN) ने कहा है कि धनी देश बड़ी संख्या में गरीब देशों से नर्सों को भर्ती कर रहे हैं जिसका असर गरीब देशों की स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ रहा है जहां स्वास्थ्यकर्मी पहले ही काम के बोझ की अति से जूझ रहे हैं। 

ओमिक्रॉन वेरिएंट के कारण संक्रमण के मामलों में उफान आने के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से जूझ रही है। जेनेवा स्थित इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज 130 देशों के राष्ट्रीय संगठनों का प्रतिनिधित्व करता है जिनमें 2.7 करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं। संगठन के सीईओ हॉवर्ड कैटन ने कहा कि बीमारी, काम के बोझ और स्वास्थ्यकर्मियों के देश छोड़कर चले जाने के कारण ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच इतनी ज्यादा संख्या में नर्सें काम से गैरहाजिर हैं, जितना दो साल की महामारी के दौरान पहले कभी नहीं देखा गया। स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी धनी देशों में भी स्वास्थ्यकर्मियों की कमी देखी जा रही है जिसे पूरा करने के लिए ये देश स्वयंसेवियों और सेवानिवृत्त कर्मियों का रुख कर रहे हैं। बहुत से देशों ने अंतरराष्ट्रीय भर्तियां भी तेज कर दी हैं जिसके कारण असमानता बढ़ रही है।

कैटन ने कोविड-19 के दौरान अंतरराष्ट्रीय नर्सों की स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार की है। इस बारे में उन्होंने कहा, "हमने यूके, जर्मनी, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में अंतरराष्ट्रीय भर्तियों में उछाल देखा है। मुझे यह रफू करने वाला हल लगता है। ऐसा ही हमने पीपीई किट और वैक्सीन के मामले में भी देखा था जबकि अमीर देशों ने अपनी ताकत के बल पर खरीदने और जमा करने का काम किया था अगर वे नर्सों के साथ भी वैसा ही करते हैं तो यह असमानता को बदतर बनाएगा।” 

आईसीएन के आंकड़ों के मुताबिक महामारी के आने से पहले भी दुनिया में कम से कम 60 लाख नर्सों की कमी थी और इस कमी का 90 प्रतिशत शिकार गरीब और मध्य आय वाले देश थे। धनी देशों ने हाल ही में जो भर्तियां की हैं, वे ज्यादातर नाइजीरिया, कैरेबिया और अन्य अफ्रीकी क्षेत्रों से हुई हैं।

कैटन कहते हैं कि ज्यादा तन्ख्वाह और बेहतर परिस्थितियां इन नर्सों को अपना देश छोड़कर विदेश जाने को प्रोत्साहित कर रही हैं। आईसीएन की रिपोर्ट कहती है कि नर्सों को इमिग्रेशन में प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे इस प्रक्रिया को और तेजी मिली है। 

कैटन कहते हैं, "कुल जमा बात यह है कि कुछ लोग इस पूरी प्रक्रिया को देखेंगे और कहेंगे कि अमीर देश नई नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने का खर्च बचा रहे हैं।” कैटन यह चेतावनी भी देते हैं कि दुनिया जिस तरह स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से जूझ रही है, अंततः अमीर देशों को भी नुकसान झेलने पड़ेंगे। वह कहते हैं कि कार्यबल को बढ़ाने के लिए दस वर्षीय योजना और बड़े निवेश की जरूरत है।

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