नयी दिल्ली। देश में आठ करोड़ से अधिक ऐसे मरीज हैं जो दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित हैं लेकिन देश में इन मर्जो के लिए कोई दवा नहीं बनती है। अब राहत भरी खबर विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने दी है।
ज्यादातर दुर्लभ बीमारियां (rare diseases) आवर्ती आनुवंशिक दोषों (recurrent genetic defects) के कारण होती है जिनका उपचार काफी महंगा (very costly to treat and medicines) होता है और देश में इसकी दवाओं का उत्पादन नहीं होता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने दुर्लभ बीमारियों पर शोध (research on rare diseases) का रास्ता खोल दिया है। इससे घरेलू स्तर पर दुर्लभ बीमारियों की दवा (medicines for rare diseases) बन सकेगी जो निश्चित ही महंगी नहीं होगी।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) ने दुर्लभ बीमारियों पर शोध-अनुसंधान शुरू करने के लिए प्रस्ताव तैयार किया है जिसमें निजी और सरकारी दोनों अनुसंधान केंद्रों को अवसर मिलने जा रहा है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने हाल ही में राष्ट्रीय नीति 2021 (National Policy 2021) को मंजूरी दी थी जिसके तहत दुर्लभ बीमारियों के इलाज (treatment of rare diseases) के लिए सरकार 20 लाख तक की वित्तीय सहायता देने वाली थी लेकिन अब यह वित्तीय सहायता 50 लाख रुपए की होगी।
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