लखनऊ। उत्तर प्रदेश (fetus) में पहली बार आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके 24 सप्ताह के गर्भस्थ (fetus) की जान बचाई गई और प्रसव के समय (delivery time) को भी 3 से 4 हफ्ते बढ़ाया गया।
अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल (Apollomedics Hospital) की स्त्री एवं प्रसूति रोग एवं फीटल मेडिसिन विशेषज्ञ (Gynecology and Obstetrics in Fetal Medicine) डॉ भूमिका बंसल (Dr. Bhumika Bansal) ने बताया कि एक गर्भवती महिला लगभग 24 सप्ताह की प्रेग्नेंसी के साथ आई थी। उसकी एम्निओटिक मैम्ब्रेन (amniotic membrane) क्षतिग्रस्त हो गई थी और सारा फ्लूइड निकल चुका था।
डॉ भूमिका ने बताया कि इस मरीज के पहले भी दो बार मिसकैरिज (miscarriage) हो चुके थे, इसलिए इस बच्चें को बचाना बेहद जरूरी था। एम्निओटिक फ्लूइड (Amniotic fluid) एक हल्के पीले रंग का द्रव है जिससे गर्भ में विकसित हो रहे भ्रूण को सुरक्षा मिलती है और वो इसी के चलते आसानी से मूवमेंट भी करता है। साथ ही बच्चे के लंग्स का ठीक तरह से विकास हो पाता एवं एक्सपैंड कर पाते हैं।
इसी फ्लूइड के कारण बच्चे के हाथ पैर भी सही से विकसित हो पाते हैं। किसी वजह से अगर फ्ल्यूड मैम्ब्रेन (fluid membrane) फट जाए तो एम्निओटिक फ्ल्यूड की कमी के कारण नवजात के फेफड़े विकसित नहीं हो पाते हैं और उसके हाथ, पैर व मुंह में सिकुड़न उत्पन्न हो जाती है।
इस स्थिति में अगर प्रेग्नेंसी को कुछ समय के लिए बढ़ाया भी जाए तब भी नवजात के लंग्स (lungs) पर प्रेशर बढ़ने के कारण उसे जीवन भर के लिए लंग्स की बीमारियां हो सकती हैं। इस केस में सबसे बड़ी चुनौती थी कि कैसे प्रेग्नेंसी का समय बढ़ाया जाए और भ्रूण के सम्पूर्ण व सुरक्षित विकास के लिए फ्लूइड को कैसे रिस्टोर किया जाए।
डॉ भूमिका ने बताया कि ऐेसे केस में नवजात को बचाने के लिए एक नई तकनीक एमिनो पैच एवं एमिनो इनफ्यूजन (amino patch and amino infusion) का इस्तेमाल किया गया। इससे एम्निओटिक मैम्ब्रेन में फ्लूइड डाला जाता है, लेकिन मैम्ब्रैन क्षतिग्रस्त होने की वजह से उसमें से फ्लूइड नही टिक पाता।
हमने एक रिसर्च बेस तकनीक को अपनाया जिसमें प्लेटलेट रिच प्लाज्मा (platelet rich plasma) और क्रायोप्रेसिपिटेट (cryoprecipitate) डाला गया। फिर ऊपर से फ्लूइड डाल दिया गया, जिससे मैम्ब्रेन का होल सील हो जाता है और फ्लूइड कुछ दिन के लिए रुक गया।
ये केस काफी जटिल था क्योंकि सारा फ्लूइड ड्रेन हो चुका था और 2 से 3 मिलीमीटर की एक छोटी सी पॉकेट थी, जिसमें अल्ट्रासाउंड गाइडेड निडिल डाली के जरिए पहले हमने प्लेटलेट रिच प्लाज्मा डाला, फिर क्रायोप्रेसिपिटेट डाला फिर फ्लूइड डाला। ऐसा करके प्रेग्नेंसी के समय को कुछ सप्ताह और बढ़ाया गया। जिसके बाद लगभग 29वें सप्ताह में सफल डिलीवरी कराई गई और नवजात (new born) को एनआइसीयू में रखा गया।
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