लखनऊ। राजधानी के विभिन्न चिकित्सा संस्थानों में आज अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया गया। इस अवसर पर एलडीए कालोनी, कानपुर रोड स्थित लोकबंधु अस्पताल में भी अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day) पर नर्सेज की हौंसला अफजाई करते हुए उन्हें सम्मान दिया गया। इस मौके पर हेल्थ जागरण ने नर्सेज से कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब लिए।
हेल्थ जागरण - फ्लोरेंस नाइटिंगेल (Florence Nightingale) को आधुनिक नर्सिंग का संस्थापक माना जाता है, ऐसा क्यों है?
अरुणा त्रिपाठी (नर्स) - फ्लोरेंस नाइटिंगेल से दुनिया भर की नर्सेज प्रेरणा लेती है और आज का दिन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। फ्लोरेंस नाइटिंगेल सम्पन्न परिवार की होने के बाद भी सेवा और करुणा में विश्वास रखती थी इसलिए युद्ध के दौरान भी वह घायल सैनिकों का उपचार करती रही। उनकी इसी सेवा भावना से हम लोग प्रेरित होते हैं और मन लगा कर मरीजों की सेवा करते हैं। कभी नर्सिंग के कार्य को समाज अच्छी नजरों से नहीं देखता था लेकिन अब इस रवैए में बदलाव आ चुका है। फ्लोरेंस नाइटिंगेल की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए अरुणा त्रिपाठी ने नर्सिंग को मां की देखभाल जैसा बताया।
हेल्थ जागरण - नर्सेज (Nurses) को जमीनी स्तर पर किन किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है?
अरुणा त्रिपाठी - मरीज और परिजन कई हड़बड़ी में होते हैं और परेशान होने के कारण नर्सेज के साथ उचित व्यवहार नहीं करते हैं। हमारी कोशिश सदैव अच्छा और सही उपचार देने की होती है लेकिन फिर भी दिक्कतें आती है। नर्सेज ने कोविड-19 काल में कोरोना वारियर्स (Corona Warriors) का काम किया था लेकिन सरकार ने हमें वो नहीं दिया जो हमें मिलना चाहिए था। नर्सेज संघ ने मांग रखी है। मांगना हमारा काम है और देना या ना देना सरकार का काम है।
हेल्थ जागरण - आम धारणा है कि नर्स महिलाएं ही होती है लेकिन अब पुरुष भी नर्स के रूप में दिखाई दे रहें हैं, क्या कारण है? इस धारणा को कैसे बदला जा सकता है?
वैभव कुमार (मेल नर्स) - देखिए कई बार ऐसी परिस्थितियां होती है जहां पुरुष ज्यादा क्षमता के साथ काम कर सकते हैं। डिजास्टर या बड़े एक्सीडेंट के समय भी पुरुष अधिक शक्ति से कार्य कर सकते हैं। रही बात मेल नर्स की तो अब महिला और पुरुष बराबर है और महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है। नर्सिंग के सेवा भाव और करुणा होनी चाहिए जो पुरुषों में भी होती है। समय के साथ सोच में परिवर्तन लाना होगा और स्त्री पुरुष को बराबर का दर्जा देना होगा।
हेल्थ जागरण - जमीनी स्तर पर कैसी दिक्कतें आती है?
वैभव कुमार - मरीजों और परिजनों से दिक्कत होती है। हम प्रयास करते हैं कि उनके हित में कार्य हो लेकिन कई बार समस्याएं आ जाती है। परिवार को छोड़कर हम अस्पतालों में भर्ती मरीजों के साथ रहते हैं। सरकार की तरफ हम उम्मीद भरी नजरें लगाए बैठे हैं कि हमारी भी सुध ली जाए और हम जैसे संविदा कर्मियों को भी सरकार पर्मानेंट करें। हमारा भी ध्यान रखें।
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