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मौसमी बदलाव से बढ़ सकता है अस्थमा अटैक।

अस्थमा का मौसमी बदलाव के कारण बढ़ जाना एक सुपरिचित घटना है। अस्थमा की बीमारी एलर्जनए जैसे मोल्ड फंगस पालतू पशुओं के बाल डस्ट माईट्स एवं वायरल संक्रमण से बढ़ सकती है।

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मौसमी बदलाव से बढ़ सकता है अस्थमा अटैक। प्रतीकात्मक

- डॉ आलोक श्रीवास्तव, 
चेस्ट फिजिशियन, सहारा अस्पताल। 

मॉनसून का समय ज्यादातर लोगों के लिए राहत लेकर आता है। झमाझम बारिश से लोगों को भारी गर्मी से आराम मिलता है। लेकिन अस्थमा पीडि़तों के लिए यह समय मुश्किल भरा होता है और उनकी स्थिति को और ज्यादा खराब कर देता है। अस्थमा का मौसमी बदलाव के कारण बढ़ जाना एक सुपरिचित घटना है। अस्थमा की बीमारी एलर्जनए जैसे मोल्ड फंगस पालतू पशुओं के बाल डस्ट माईट्स एवं वायरल संक्रमण से बढ़ सकती है। मॉनसून भी अस्थमा की बीमारी के बढ़ने का एक मुख्य कारण है। बारिश के मौसम में कम धूप मिलने के कारण विटामिन डी की कमी हो जाती हैए जो अस्थमा के अटैक के बिगड़ने का एक मुख्य कारण है।   

मॉनसून के दौरान ठंडा वातावरण भी अस्थमा के लक्षणों व संकेतों को और ज्यादा खराब कर सकता है। आसपास के वातावरण में नमी से फंगस हो सकती है जिससे एलर्जी बढ़ सकती है और अस्थमा का अटैक आ सकता है। साथ ही इस मौसम में वायरल संक्रमण की संभावनाएं ज्यादा हो जाती हैं तथा एलर्जन बढ़कर लक्षणों को और ज्यादा गंभीर बना सकते हैं।

हर बार मॉनसून में अस्थमा के कारण अस्पताल में आने वाले लोगों में भारी वृद्धि हो जाती है। यह वृद्धि खासकर बच्चों में होती है। मौजूदा परिदृश्य में जब मरीज अस्पताल जाने या डॉक्टर से नियमित रूप से परामर्श लेने में असमर्थ हैं तब अस्थमा को बढ़ने से रोकना और भी ज्यादा जरूरी हो गया है। इसलिएए यह बहुत आवश्यक है कि अस्थमा को नियंत्रण में रखा जाए। सबसे अच्छा यह होगा कि मॉनसून के दौरान अस्थमा के प्रबंधन के लिए उपयोगी परामर्श सदैव अपने साथ रखे जाएं।

खांसी और सांस की तकलीफ अस्थमा के लक्षण हैं। यह सांस की एक क्रोनिक बीमारी है जो फेफड़ों में मौजूद हवा की नलियों में सूजन के कारण उत्पन्न होती है। अस्थमा पीडि़त को हवा की नली में सिकुड़न महसूस होती हैए जिसके कारण मरीज को सामान्य रूप से सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

अस्थमा के अटैक के इलाज के लिए आपातकालीन कक्ष में जाने के मामले बारिश के मौसम में बढ़ गए जो नमी में वार्षिक वृद्धि के साथ एक या दो महीने बढ़े और शुष्क मौसम में कम हो गए। यह पारस्परिक संबंध घर में डस्ट माईट्स और वायरल संक्रमण के प्रसार के साथ संबंध होने की संभावना बढ़ाता है। इसलिएए यह जरूरी है कि अस्थमा के प्रबंधन के लिए मॉनसून के दौरान सांस की समस्याओं के लिए डॉक्टर के परामर्श से काम किया जाए।

अस्थमा पीडि़तों के लिए मॉनसून का समय मुश्किल होने के कुछ अन्य कारण निम्नलिखित हैं।
1- मॉनसून के दौरान वायरल संक्रमण के बढ़ने की संभावना होती है। वातावरण में अनेक वायरस एवं बैक्टीरिया का प्रवेश हो जाता है। बारिश के मौसम में सर्दी.जुकाम बढ़ जाते हैंए जिससे अस्थमा पीडि़तों के लिए समय और ज्यादा मुश्किल हो जाता है।
2- फंगस बढ़ जाती है। निरंतर बारिश होने से आसपास के वातावरण में फंगस की वृद्धि होती है। बरसात के मौसम में ये फंगस मोल्ड हवा में नमी जैसे अनेक कारणों से बढ़ जाते हैं। इससे ज्यादातर रात में विपरीत प्रभाव देखने को मिलते हैं।
3- घरों में मौजूद डस्ट माईट्स सबसे आम एलर्जन हैं जिनकी संख्या मॉनसून के दौरान ह्यूमिडिटी बढ़ने के कारण बढ़ जाती है। वातावरण में बादल छाए रहने के कारण धूप कम हो जाती हैए जिसके कारण चादरों के सूखने के लिए पर्याप्त धूप नहीं मिल पाती और घरों में डस्ट माईट बढ़ जाते हैं।

मॉनसून के दौरान अस्थमा पर नियंत्रण कैसे रखें?
1. अस्थमा बढ़ाने वाली चीजों से बचें।
2. इन्हेलर्स को पास में रखें।
3. डॉक्टर से परामर्श लें।
4. डॉक्टर के परामर्श से नियमित तौर पर दवाई लेते रहें।

लगातार बढ़ने के बाद भी अस्थमा सबसे कम नियंत्रित की गई बीमारियों में से एक है। अस्थमा के प्रबंधन के लिए इन्हेलर्स ओरल थेरेपी के मुकाबले सबसे प्रभावशाली इलाज के रूप में उभरे हैं। इन्हेलर्स द्वारा यह दवाई पहले खून में तथा शरीर के अन्य अंगों में प्रवाहित होने की बजाय सीधे फेफड़ों में पहुंचती है। इसलिए दवाई की कम खुराक लेने की जरूरत पड़ती है और इसके साईड इफेक्ट भी कम होते हैं।

इस मॉनसून अस्थमा के कारण अपनी खुशी को कम न होने दें और इन्हेलेशन थेरेपी द्वारा अस्थमा पर नियंत्रण पाएं।

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