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इंटरव्यू

बहुत दुरूह स्थितियों में होम्योपैथी चिकित्सक समाज की सेवा कर रहे हैं- डॉ अनिरुद्ध वर्मा

यदि रोगों को जड़ से ठीक करना है, स्वास्थ्य प्रदान करना है, गाँव-गाँव, घर-घर तक चिकित्सा सुविधा पहुचानी है तो एक मात्र विकल्प होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति ही है। चिकित्सा पद्धति में आत्मनिर्भर होने के लिए होम्योपैथी अपनाना होगा।

हुज़ैफ़ा अबरार
February 15 2021 Updated: February 20 2021 20:38
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बहुत दुरूह स्थितियों में होम्योपैथी चिकित्सक समाज की सेवा कर रहे हैं- डॉ अनिरुद्ध वर्मा

हेल्थ जागरण ने होम्योपैथिक चिकित्सा को लेकर पूर्व होम्योपैथिक चिकित्साधिकारी डॉ अनिरुद्ध वर्मा  से बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्नों चर्चा किया। उन्होंने हेल्थ जागरण के प्रयास को सराहनीय बताया। रोगों को जड़ से समाप्त करने की बात करते हुए डॉक्टर साहब ने कहा कि होम्योपैथी को बढ़ावा दे कर सस्ता और आसान इलाज जनता को मुहैया करवाया जा सकता है। प्रस्तुत है वार्ता का विवरण। 

डॉ अनिरुद्ध वर्मा- हेल्थ जागरण के प्रयासों का मैं स्वागत करता हूँ एवं शुभकानाएं देता हूँ।

हुज़ैफ़ा अबरार- होम्योपैथी की स्वीकारिता बढ़ी है लेकिन रिसर्च और डेवलपमेंट नहीं हो पा रहें है, इसकी वजह क्या है ?

डॉ अनिरुद्ध वर्मा - निश्चित रूप से स्वीकारिता बढ़ी है। होम्योपैथी में रोगों के उपचार की, रोगों के रोकथाम की और रोगों को जड़ से ख़तम करने की क्षमता हैं। विगत 200 सालों में इसमें बहुत परिवर्तन आया है। विकास, शोध और अनुसंधान के लिए धन की आवश्यकता होती है। सरकार के सहयोग नहीं करने के कारण इसके विकास और शोध की गति धीमी है। पर्याप्त बजट मिलने पर तेज़ी  के साथ शोध होगा।

हुज़ैफ़ा अबरार- जिस प्रकार की सुविधाएं एलोपैथी डॉक्टरों मिलती है। क्या उस प्रकार की सुविधाएँ आप लोगों को मिलतीं हैं?  

डॉ अनिरुद्ध वर्मा- आपका प्रश्न बिलकुल सही है। अगर केंद्र सरकार का बजट देखे, स्वास्थ्य का बजट लगभग 2 लाख 23 करोड़ रुपये का है जिसमें से 2 हज़ार 900 करोड़ रुपये का बजट होम्योपैथी को मिला है। जो स्वाथ्य बजट का एक प्रतिशत है। इस छोटे से बजट में होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति किस प्रकार विकास करेगी यह सोचने का विषय है। अगर बात करतें हैं नौकरियों की, चिकित्सा संस्थानों की और शोध संस्थानों की, तो होम्योपैथी के मात्र 1600 राजकीय होम्योपैथी चिकित्सालय हैं और 9 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं। एलोपैथी में 16,000 चिकित्सालय और मेडिकल अधिकारी काम कर रहें हैं। इस कारण उन की सुविधांए ज़्यादा दूर तक पहुचतीं है और हमारी नहीं पहुंच पातीं हैं। फिर भी हर पाँचवाँ आदमी होम्योपैथिक चिकित्सा ले रहा है। तमाम अभाव में, तमाम कमी के बाद हमारे चिकित्सक काम कर रहें हैं।    

हुज़ैफ़ा अबरार- ऐलोपैथिक में नए शोध हो रहें हैं, नयी जांचे हो रही हैं और नयी बीमारियों का पता चल रहा है। क्या। होमयोपैथी में ऐसा हो रहा है?    

डॉ अनिरुद्ध वर्मा- भारत सरकार की संस्था केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद् शोध कर रही है। संसाधन केअभाव में शोध का क्षेत्र व्यापक नहीं है। जितना बजट अन्य चिकित्सा पद्धतियों को मिलता है, उसका पाँच फीसदी भी यदि होम्योपैथी को मिल जाए तो हम वही परिणाम देंगे। कम पैसे और सीमित संसाधनों में हम ज़्यादा अच्छा परिणाम दे पाएंगे।     
यदि रोगों को जड़ से ठीक करना है, स्वास्थ्य प्रदान करना है, गाँव-गाँव, घर-घर तक चिकित्सा सुविधा पहुचानी है तो एक मात्र विकल्प होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति ही है। चिकित्सा पद्धति में आत्मनिर्भर होने के लिए होम्योपैथी अपनाना होगा। यह जड़ से रोगों को ठीक करने वाली चिकित्सा पद्धति हैं।  

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