नई दिल्ली। कोरोना के नए-नए स्वरूप तेजी से लोगों को अपनी चपेट में ले रहे हैं, लेकिन अब वायरस का पता लगाने के लिए होने वाली जांच को लेकर अमेरिका में बहस छिड़ गई है। कुछ अध्ययनों में यह दावा किया गया है कि नाक से सैंपल (स्वैब) लेने की बजाय मुंह से स्वैब (सलाइवा: लार) लेना ज्यादा कारगर होता है।
पिछले दो वर्षों के दौरान कोरोना वायरस की टेस्टिंग के लिए नाक से स्वैब लिए जाते हैं। चिकित्साकर्मी नाक में स्वैब डाल कर इस प्रक्रिया को पूरी करते हैं, लेकिन अब इसकी टेस्टिंग को लेकर बहस छिड़ गई है। कुछ शोध में नाक से लिए गए सैंपल को सटीक बताया गया है तो कुछ में मुंह से स्वैब लेने को कारगर बताया गया है।
मैरीलैंड विश्वविद्यालय में रेस्परटोरी वायरस के विशेषज्ञ डॉ. डोनाल्ड मिल्टन ने कहा कि श्वसन संक्रमण से निपटने के लिए पारंपरिक दृष्टिकोण नाक से स्वैब लेना ही है, लेकिन तेजी से फैल रहे ओमीक्रोन वेरिएंट के मद्देनजर अमेरिका में घरों पर हो रहे टेस्ट को लेकर सवाल उठने लगे हैं। उन्होंने कहा कि वायरस का पता लगाने के सबसे अच्छा तरीका लेकर बहस लाजिमी है।
इसलिए उठे सवाल
मिल्टन ने कहा कि वायरस सबसे पहले हमारे मुंह और गले में दिखाई देता है। इसका मतलब यह है कि जिस दृष्टिकोण से हम टेस्ट कर रहे हैं उसमें समस्याएं हैं। कुछ शोध से पता चला है कि नाक से स्वैब लेने की बजय लार से नमूने एकत्र करना ज्यादा कारगर रहा। नाक से लिए स्वैब की तुलना में लार से लिए गए नमूने से पहले ही संक्रमण का पता चल जाता है। फिलहाल जो आंकड़े आ रहे हैं उससे पता चलता है कि लार आधारित टेस्ट की अपनी सीमाएं हैं। कई लैब के पास सलाइवा को प्रोसेस करना का सेटअप नहीं है और न ही एंटीजन टेस्ट को लेकर अमेरिका में ऐसी व्यापक व्यवस्था है।
सलाइवा स्वैब ने अच्छा काम किया
हाल में दक्षिण अफ्रीकी शोधकर्ताओं ने पाया कि डेल्टा वेरिएंट का पता लगाने में नाक से लिए गए स्वैब ने सलाइवा स्वैब से अच्छा काम किया, जबकि ओमीक्रोन के केस में इसका ठीक उल्टा हुआ। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि मुंह की टेस्टिंग को नाक की तुलना में ज्यादा गंभीर नहीं माना जाता है। सलाइवा के डाटा पर फिलहाल विशेषज्ञों की राय एक जैसी नहीं है।
एफडीए ने कई टेस्ट को मंजूरी दी
उधर, कुछ लैब विशेषज्ञ इस बात को लेकर सशंकित हैं कि क्या सलाइवा टेस्ट संक्रमण का पता लगाने के लिए भरोसेमंद तरीका है? मिनिसोटा में हेनेपिन काउंटी मेडिकल सेंटर में लैब विशेषज्ञ ग्लेन हैनसन ने कहा कि अगर बेहतर नहीं तो सलाइवा अच्छा काम तो करता है। हां, अगर इसे ठीक तरह से प्रोसेस किया जाए। वहीं, इस बात के भी संकेत मिले हैं कि वायरस नाक से पहले सलाइवा में दिख जाता है। ऐसे में इसके सैंपल से काफी पहले पॉजिटिव की पहचान हो सकती है। एफडीए ने कई सलाइवा बेस्ड पीसीआर टेस्ट को मंजूरी दी है।
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