प्रकृति के स्थापित नियमों से छेड़-छाड़ करना और बाज़ार में बिकाऊ उत्पाद बनाने के लिए पर्यावरण और मनुष्यता की अनदेखी करना, वर्तमान विज्ञान का घोर दुरूपयोग है। औद्योगिक क्राँति (industrial revolution) के बाद से मनुष्य का पूरा जीवन आप्रकृतिक वस्तुओं पर निर्भर हो गया है। इसी क्रम में टेस्ट टयूब बेबी (test tube baby), सरोगेट मदर (surrogate mother) और भ्रूण की अवस्था में इलाज (treatment at the stage of embryo) जैसी अभूतपूर्व सफलताएं वैज्ञानिकों को उन्नत मनुष्य बनाने के लिए लगातार प्रेरित कर रही हैं। ऐसे में इस्राइल के वैज्ञानिकों द्वारा चूहे का कृत्रिम भ्रूण के निर्माण ने इन संभावनाओं को पंख लगा दिए है। ये सब संभव होता है जीनोम इंजीनियरिंग से जो आनुवांशिकी विज्ञान की उन्नत शाखा है।
आनुवांशिकी के बारे में हम सभी बचपन से पढ़ते चले आ रहे हैं। 1865 में पहली बार, संकर पौधों पर प्रयोगों के जरिए ग्रेगर मेंडल ने वंशानुक्रम के मूल सिद्धांतों की खोज की थी। उन्हीं प्रयोगों से जो निष्कर्ष निकले, उन्हें आज हम जेनेटिक्स यानी आनुवांशिकी कहते हैं।
वर्तमान परिदृश्य में तो आनुवांशिकी (genetics) को लेकर सुपरमैन जैसे चरित्र भी गढ़ दिए गए हैं लेकिन अब आप सोंच रहे होंगे कि क्या सुपरमैन (Superman) जैसा कैरेक्टर जिसमें परिवर्तित डीएनए की वजह से क्षमताएं अकल्पनीय रूप से बढ़ जाती हैं ऐसा क्या वाकई में संभव है? इस विषय में जीनोम इंजीनियरिंग (genome engineering) के विकास के प्रणेता और दशकों से आनुवांशिकी पर काम करने वाले दुनिया के जाने-माने वैज्ञानिक जॉर्ज चर्च कहते हैं कि सुपरमैन को निर्मित करने का विचार, आनुवांशिकी के भविष्य से कोसों दूर है। ये नजारे केवल साइंस फिक्शन की घिसी पिटी फिल्मों में ही देखे जा सकते हैं और वास्तविकता से उनका कोई नाता नहीं होता।
चीनी वैज्ञानिकों की टीम ने शायद कुछ ऐसी ही फिल्मों से प्रेरित होकर एक ऐसे बच्चे को डिजाइन किया जिस पर भविष्य में एचआईवी जैसे जानलेवा वायरस का असर नहीं होगा। इस ऑपरेशन को परफॉर्म करने के लिए उन्होंने एक खास तरह के जीनोम एडिटिंग टूल (genome editing tool) CRISPR CAS 9 की मदद ली। साल 2018 में चीन की ये उपलब्धि विज्ञान के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी घटना थी।
इस घटना ने इंसानी भविष्य के समक्ष कई नई संभावनाओं को खड़ा कर दिया है। ऐसे में जेनेटिक इंजीनियरिंग को लेकर चर्चाएं काफी तेज हो गईं लेकिन वो कहते हैं न कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं; तो इसी तरह कुछ इसे प्रौद्योगिकी मानते हैं और कुछ इसको आपके हाथों में थामी हुई कैंची मानते हैं। यानी कि इन लोगों के मुताबिक जेनेटिक इंजीनियरिंग से एक एडिटेड वर्जन का निर्माण किया जा सकता है तो उसी तरह उन जीन्स को काटा या हटाया भी जा सकता है जो आनुवंशिक बीमारियों (genetic diseases) की वाहक होती हैं।
क्या है जेनेटिक इंजीनियरिंग - What is genetic engineering
डीएनए ही किसी भी जीव की बनावट और उसकी संरचना को तय करता है। इस पृथ्वी पर हर एक जीव का अपना अलग डीएनए (Deoxy ribonucleic Acid) होता है। डीएनए के कुछ खास हिस्सों को जीन के रूप में जाना जाता है। इन्हीं जीन्स से जीवों की विशेषताएं तय होती हैं। जीन्स माता पिता द्वारा उनकी अगली संतान में ट्रांसफर होती रहती है। जीव के सभी जेनेटिक मटेरियल को जीनोम कहा जाता है। वैज्ञानिकों द्वारा जीवों के जीनोम में किए गए बदलाव को ही जेनेटिक इंजीनियरिंग के नाम से जाना जाता है। जीनोम एडिटिंग के जरिए वैज्ञानिक पेड़-पौधों, बैक्टीरिया, जीव जन्तुओं के डीएनए में बदलाव करके उनके शारीरिक लक्षणों, उनकी बनावट, कार्य करने की क्षमता आदि चीजों में बढ़ोतरी कर सकते हैं।
वहीं जॉर्ज चर्च ने बताया, "ये एक गलतफहमी है कि आप एक संपूर्ण मुकम्मल इंसान या सुपरमैन बन सकते हैं। ये अक्सर समझौता होता है। आप कोई चीज हासिल करते हैं तो आप कुछ गंवा भी देते हैं। साइकिल के जो फीचर आपको अच्छे लगते हैं वो रेस वाली कार या जेट के लिए सच नहीं है।"
जेनेटिक इंजीनियरिंग वाकई में एक नया प्रयोग है लेकिन कई वैज्ञानिक इस पर एकमत नहीं हो पाते। आज जेनेटिक्स के क्षेत्र में जो ये खोजें हो रही हैं। वह हमारे आने वाले भविष्य में ठीक ऐसी परिस्थितियां खड़ी कर सकती हैं, जहां समाज में आर्थिक विषमता के साथ साथ जैविक असमानता (Biological Inequality) भी होगी।
लेखक - श्वेता सिंह
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