जेनेवा। कोविड-19 संक्रमण के मामलों और उससे हो रही मौतों में गिरावट जारी है लेकिन यह समय निश्चिंत होकर बैठने का नहीं है। कोरोना वायरस के नए वैरीएण्ट कभी भी संक्रमण में तेजी ला सकतें हैं। ओमिक्रॉन वैरीएण्ट (Omicron variant) के नए प्रकार की वजह से अफ़्रीका और अमेरिका में संक्रमण की नयी लहर आ चुकी है। यह एक और संकेत है कि दुनिया से अभी वैश्विक महामारी ख़त्म नहीं हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने उक्त बातें दुनिया को आगाह करते हुए कहा।
यूएन एजेंसी प्रमुख ने दोहराया कि ज़िन्दगियों की रक्षा करने, स्वास्थ्य प्रणालियों को बचाने, और लम्बी अवधि तक रहने वाले कोविड-19 (COVID-19) से बचने के लिये, हर देश में 70 फ़ीसदी आबादी का टीकाकरण (vaccination) किया जाना होगा।
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के प्रमुख ने बुधवार को जेनेवा में पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि मार्च 2020 के बाद से पहली बार कोविड-19 से साप्ताहिक मृतक संख्या अपने सबसे निचले स्तर पर है। साथ ही उन्होंने चेतावनी भी जारी करते हुए कहा कि ये रुझान, स्वागतयोग्य हैं, लेकिन पूरी कहानी बयाँ नहीं करते हैं।
उन्होंने बताया कि दक्षिण अफ़्रीका के वैज्ञानिकों ने पिछले वर्ष ओमिक्रॉन नामक वैरीएण्ट की शिनाख़्त की थी, जिसके बाद से उसके दो उप-प्रकार (sub-variants), BA.4 and BA.5, सामने आ चुके हैं। कोरोना वायरस के इन प्रकारों से संक्रमण मामलों में फिर तेज़ी देखी गई है।
महानिदेशक टैड्रॉस ने संक्रमण व गम्भीर बीमारी का सर्वाधिक जोखिम झेल रहे सभी लोगों के टीकाकरण पर बल दिया गया है
टीकाकरण अहम - Vaccination is important
बताया गया है कि पहले से कहीं अधिक संख्या में वैक्सीन की ख़ुराकें उपलब्ध हैं, लेकिन राजनीतिक संकल्प के अभाव, संचालन क्षमता की मुश्किलों, वित्तीय दबावों, ग़लत व भ्रामक जानकारी के कारण वैक्सीन की मांग में कमी आ रही है।
यूएन एजेंसी के शीर्ष अधिकारी ने सचेत किया कि कुछ देश, वायरस में आ रहे बदलावों को अनदेखा कर रहे हैं। वे इससे वाकिफ नहीं हैं कि आगे क्या दुष्परिणाम हो सकतें हैं।
डॉक्टर टैड्रॉस ने चिंता प्रकट करते हुए बताया कि कारगर एण्टी-वायरल दवाओं (anti-viral drugs) की सीमित उपलब्धता और ऊँची क़ीमतों के कारण, निम्न- और मध्य-आय वाले देशों के लिये उनकी सुलभता कम हो गई है। वहीँ विनिर्माता कम्पनियों को रिकॉर्ड मुनाफ़ा हो रहा है।
उन्होंने आगाह किया कि ऐसी क़ीमतों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है, जिससे जीवनदायी उपचार, धनी वर्ग के लिये उपलब्ध हों, जबकि निर्धनों की पहुँच से दूर हो जाएं। ऐसा होना एक नैतिक विफलता होगी।
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