लखनऊ। कोरोना के वो दो भयानक वर्ष की यादें अभी भी जेहन में है। हालांकि अब यह बीमारी उतनी भयानक नहीं रह गयी है लेकिन फिर भी पोस्ट कोविड जटिलताओं के नाते अभी भी लोगों की मौत हो रही हैं। वैसे तो पोस्ट कोविड कॉम्प्लीकेशन्स से उभरने वाली बिमारियों का कोई सटीक इलाज तो सामने नहीं आया है लेकिन स्टेम सेल थेरेपी एक ऐसी उम्मीद की किरण है जो लाखों लोगों को पोस्ट कोविड फेफड़े के फाइब्रोसिस से उबरने में मदद करता है।
क्या है पोस्ट कोविड फाइब्रोसिस
पूरी दुनियाँ समेत भारत में अभी भी लाखों लोग ऐसे हैं जो कोविड (covid-19) के हानिकारक प्रभावों से उबर नहीं पाए हैं। तमाम रोगी ऐसे हैं जिन्हे कोविड के बाद (post covid) लंग फाइब्रोसिस (lung fibrosis) या इंटरस्टीशियल लंग डिजीज (interstitial lung disease) का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे मरीजों को कोविड के बाद भी जीने के लिए हर दिन मेडिकल ऑक्सीजन (medical oxygen) की आवश्यकता होती है। ऐसे रोग से ग्रसित लोगों की सांस फूलती है (shortness of breath) और बार-बार सूखी खांसी (frequent dry cough) आती है। फेफड़ों के विशेषज्ञों (lung specialists) के अनुसार यह एक बहुत ही विकट समस्या है और ऐसे रोगियों की मदद के लिए बहुत कुछ नहीं किया जा सकता है।
डॉ बी एस राजपूत उम्मीद की एक किरण
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर (GSVM Medical College, Kanpur) में रीजनरेटिव मेडिसिन और सेल आधारित थेरेपी (regenerative medicine and cell based therapy) के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ बी एस राजपूत (Dr B S Rajput) इस सम्बन्ध में उम्मीद की एक नयी किरण बन कर सामने आये हैं। डॉ राजपूत ने बताया कि ऑटिज्म (autism), रीढ़ की हड्डी की चोट (spinal cord injury), मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (muscular dystrophy) और एएलएस (ALS) जैसे तंत्रिका रोगों के कई मामलों में स्टेम सेल थेरेपी का सफ़ल इस्तेमाल पहले से ही किया जा रहा है। ऐसे में फेफड़े के फाइब्रोसिस के मरीजों को स्टेम सेल थेरेपी से बड़ी राहत मिलेगी। डॉ राजपूत ने लखनऊ की एक मरीज़ (महिला) की बोन मैरो का प्रयोग कर स्टेम थेरेपी के माध्यम से इलाज कर उन्हें राहत भी पंहुचाया है।
डॉ बी एस राजपूत ने किया महिला का इलाज
संयोग से ऐसी स्थिति लखनऊ के एक निवासी के सामने आई, जो 2016 से पहले से ही फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित थी, लेकिन उसे जीने के लिए कभी मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ी। लेकिन अप्रैल 2021 में कोविड से संक्रमित होने के बाद, वह बच तो गई, लेकिन फेफड़े की घातक बीमारी (fatal lung disease) विकसित हो गई, जिसे लंग फाइब्रोसिस कहा जाता है, जिसका वर्तमान में कोई निश्चित इलाज उपलब्ध नहीं है। उसे जीवित रहने के लिए चौबीसों घंटे मेडिकल ऑक्सीजन की आवश्यकता थी।
ऐसे में मरीज ने स्थानीय अस्पताल में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (stem cell transplant) करवाया। यह ट्रांसप्लांट मुंबई के एक सलाहकार स्टेम सेल ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ बी एस राजपूत की देखरेख में हुआ।रोगी पर स्टेम सेल की एक सरल प्रक्रिया की गई। पिछले 3 महीनों के दौरान रोगी में काफी सुधार हुआ है और उसकी मेडिकल ऑक्सीजन की आवश्यकता 50 प्रतिशत कम हो गई है।
बीमा कंपनियां, सरकार कर रही हैं मदद
ऐसी प्रक्रिया में एक बड़ी समस्या पैसे को लेकर आ जाती है। आमतौर पर लोग ज्यादा खर्च होने के नाते इस प्रक्रिया में भाग लेने से घबराते हैं। तो अब आपकी जानकारी के लिए बता दें कि स्टेम सेल थेरेपी (stem cell therapy) भी बीमा कंपनियों (medical Insurance) के दायरे में आ गया है और तमाम बीमा कपनियां भी ऐसे रोगियों को वित्तीय राहत प्रदान कर रही हैं। यहां तक कि पीएम रिलीफ फंड और सीएम रिलीफ फंड भी बोन मैरो सेल ट्रांसप्लांट (bone marrow cell transplant) के लिए गरीब मरीजों की मदद कर रहे हैं।
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