सरल, सहज जीवन में स्वास्थ्य बसता है, यह कहावत वर्षों पुरानी है, आज आयुर्वेद चिकित्सक, मनोवैज्ञानिक से लेकर आधुनिक चिकित्सा जगत भी यह मानने लगा है कि जीवन में रोग का कारण विकृत मनःस्थिति है। विकृत मनः स्थिति का आशय है व्यक्ति के भावों-विचारों व व्यवहार में असंतुलन का होना। जो व्यक्ति के व्यक्तित्व से लेकर उसके स्वास्थ्य, सम्पूर्ण जीवन तक को विकृत करता है। हमारे विशेषज्ञ कहते हैं कि जीवन की असली पहचान व्यक्ति की सहजता में होती है, असली व्यक्तित्व सहजता से मिलता है।
शांत व्यक्तित्व को कैसे जाने - How to know a calm personality
व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से ही रोगी नहीं होता, अपितु वह भावनात्मक, मानसिक एवं सामाजिक रोगी भी हो सकता है। इनमें व्यक्ति के अंदर का भाव ही उसका मूल है। अंदर से सहज, सरल, शांत भाव से समग्र स्वास्थ्य पाना सम्भव है। ध्यान रहे सामान्य अवस्था में हर व्यक्ति सहज व शांत रहता है, लेकिन जब कोई उसे छोड़ दे, कुछ कह दे, दुर्व्यहार कर दे, तब भी वह शांत रहे, क्रोध न करें, तो समझें कि वह असल में शांत है। यदि छेड़ते ही क्रोध करने लगे, मरने-मारने पर तुल जाये, तो उसे शांत नहीं कहा जा सकता। आयोजित सहजता व शांति वाला व्यक्ति अंदर ही अंदर विकृत होता रहता है, परिणामतः एक न एक दिन उसमें रोग के लक्षण प्रकट हो ही जाते हैं।
व्यक्तित्व को आकार कैसे दें - How to shape personality
वास्तव में अशांति, द्वेष, घृणा, क्रोध, ईर्ष्या ये जब अंदर होते हैं, तो रोग के रूप में समय के साथ प्रकट होते हैं। मनोविशेषज्ञ उपचार करते समय इसी को रोगी के अंदर से बाहर लाने का प्रयास करते हैं, विशेषज्ञों का मानना है कि ‘‘अंदर का विकृत भाव चेहरे, आंखों, हाव-भावों, होंठो से प्रकट हो जायेगा, यदि वह अंदर है। व्यक्ति अंदर से प्रसन्न, शांत है तो उसके हावभाव से क्रोध, ईर्ष्या आदि विकार नहीं निकलेंगे। बाहर से कोई कुछ क्यों न कहेे, तब अशांति वाली प्रतिक्रिया आयेगी ही नहीं। साधना में भी साधक को अपने अंदर को संवारने की ही प्रेरणा दी जाती है। साधक अपने को साधते हुए अंदर के क्रोध को करुणा में बदलने का प्रयास करता है। तब उसे बाहरी व्यवहार प्रभावित नहीं करता और हर परिस्थिति में वह शांत रहता है। वास्तव में अंदर के प्लेटफार्म पर खडे़ होकर ही व्यक्ति अपने सरल-सहज स्वस्थ व्यक्तित्व को आकार दे पाता है।
सद्गुरु बताते हैं साधनायें - Sadhguru explains the sadhna
आध्यात्मिक प्रगति में भी व्यक्ति जहां पर खड़ा है, वहीं से उसका उत्थान निर्भर करता है, इसीलिए सद्गुरु शिष्य को बाहरी व्यवहार से नहीं, अपितु उसे अंदर से पकड़ते हैं, उसी आधार पर साधनायें बताते हैं और साधक सफल होता है। आयुर्वेद चिकित्सक भी यही प्रयोग अपनाते हैं, आधुनिक चिकित्सक भी अब व्यक्ति के व्यक्तित्व के तल में उतर कर उपचार करने पर विचार करने लगे हैं। साइकोलोजिस्ट उपचार के समय व्यक्ति को गहरे तक कुरेदते हैं, वह बाहर से जो कह रहा है, उसकी अपेक्षा उसकी कल्पनायें, भावों व कथन के पीछे छिपे भावों, सपनों को पकड़कर अपना कार्य करते हैं। क्योंकि व्यक्ति अपने भीतर की परतों में खोया होता है, जो व्यक्ति की वास्तविकता के बारे में बताते हैं।
शोध के बाद लोक व्यवहार में देखने को मिला है कि जो व्यक्ति सहज है, सरल है, सेवा, प्रेम से जुड़ा है, अपना संतुलन बनाकर चलता है, वह अपनी वास्तविकता में जीता है। ऐसा व्यक्ति अपनी दुविधा, संशय, असमंजस से निकल चुकता है। जबकि दुविधा वाला व्यक्ति खाना कुछ चाहता है, खा कुछ और लेता है, कहना कुछ चाहता है, कह कुछ जाता है। ऐसे व्यक्ति का मन आधा- अधूरा काम करता है, इससे आधा-अधूरा व्यक्तित्व बनता है, अंततः व्यक्तित्व में विकृत आती है, जो रोग का कारण बनता है। साइकोलोजिस्ट कहते हैं जब तक व्यक्ति अपने अंदर-बाहर से एक नहीं हो लेेता, वह न तो स्वस्थ रह सकता है, न सही ढंग से लोगों के साथ व्यवहार कर पाता है। न ही उसे जिन्दगी में सुख संतोष मिल सकता है।
इम्प्रेस करने के प्रयास से भी व्यक्तित्व होता है कमजोर - Personality weakens by trying to impress
दूसरों को इम्प्रेस करने के प्रयास से भी व्यक्तित्व कमजोर होता है। अक्सर किसी व्यक्ति से सभा में कुछ बोलने के लिए कहें, तो वह असहज हो जाता है, क्योकिं उसे लगता है हम लोगों को इम्प्रेस करने के लिए बोल रहे हैं। ऐसे में बोलेगा कुछ और निकलेगा कुछ। पर जब वह अंदर बाहर से एक होता है, तो सहज होता है और इस सहजता में वास्तविक व्यक्तित्व व्यक्त होता है। ये सहजता के गुण आत्मा से निकलते हैं, शांति, प्रसन्नता, प्रेम, करुणा आदि आत्मा के गुण हैं, हमें जीवन को इन्हीं भावों के साथ जीना चाहिए। तब व्यक्ति हृदय से जियेगा, संतोष से जियेगा और वह विकृत होने से बचा रहेगा, फिर वह रोगी भी नहीं होगा। इसीलिए संत, चिकित्सक आदि व्यक्ति को अपने असली व्यक्तित्व के खोज की प्रेरणा देते हैं, जिससे व्यक्तित्व विकृत होने से बचे, सहज रहे और व्यक्ति सदा निरोगी जीवन जिये।
लेखक - डॉ आर्चिका दीदी
सौंदर्या राय May 06 2023 0 62814
सौंदर्या राय March 09 2023 0 72869
सौंदर्या राय March 03 2023 0 71001
admin January 04 2023 0 69942
सौंदर्या राय December 27 2022 0 57993
सौंदर्या राय December 08 2022 0 48895
आयशा खातून December 05 2022 0 103008
लेख विभाग November 15 2022 0 72373
श्वेता सिंह November 10 2022 0 77313
श्वेता सिंह November 07 2022 0 69254
लेख विभाग October 23 2022 0 56477
लेख विभाग October 24 2022 0 54920
लेख विभाग October 22 2022 0 63750
श्वेता सिंह October 15 2022 0 68472
श्वेता सिंह October 16 2022 0 67475
COMMENTS