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सरकारी अस्पतालों में पैदा होने वाले बच्चों को बहरेपन से बचाने के लिए बीएमसी की मुहिम

बीएमसी के एक अधिकारी का कहना है कि कारपोरेशन बच्चे के पैदा होने के 24 से 48 घंटे में इन बच्चों की जांच करना चाहती है। इस जांच के लिए एक एजेंसी को नियुक्त किया जाएगा।

विशेष संवाददाता
August 26 2022 Updated: August 26 2022 03:50
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सरकारी अस्पतालों में पैदा होने वाले बच्चों को बहरेपन से बचाने के लिए बीएमसी की मुहिम प्रतीकात्मक चित्र

मुंबई। बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन ने बच्चों को होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से बचाने के लिए एक मुहिम चलाई है। जिसके तहत सरकारी अस्पतालों में पैदा होने वाले हर बच्चे में बहरेपन की जांच करने का फैसला किया गया है।

 

मुंबई के सरकारी अस्पतालों में हर साल 70 हजार से ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं। बीएमसी के एक अधिकारी का कहना है कि कारपोरेशन बच्चे के पैदा होने के 24 से 48 घंटे में इन बच्चों की जांच करना चाहती है। इस जांच के लिए एक एजेंसी को नियुक्त किया जाएगा, जिसके लिए टेंडर निकाला गया है।

 

बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन (BMC) के पास फिलहाल ऐसा कोई डेटा नहीं है, जिसमें ये पता लग सके कि कितने बच्चे बहरेपन के साथ पैदा होते हैं। बीएमसी के अधिकारी का कहना है इन सरकारी अस्पतालों (government hospitals) में इस जांच को शुरू होने में कुछ महीने लगेंगे। बीएमसी अपने 47 अस्पातलों और जच्चा-बच्चा केंद्र में ये जांच शुरू करेगी।

 

बीएमसी (BMC) की मेडिकल सर्विस एंड एजुकेशन की निदेशक डॉ. नीलम एंड्राडे का कहना है कि ओटोअकॉस्टिक एमिशन टेस्ट (OAE) और ऑटेमेटेड ब्रेनस्टेम रिस्पॉन्स सिस्टम (AABRS) ये पहचानने में मदद करेगा कि कौन सा बच्चा बहरा है। अगर हम जन्म दोष की पहचान कर लेते हैं तो ये बच्चे की शुरुआती उम्र में ही उपचार में मदद करेगा और छह महीने के भीतर बच्चे को सुनने की क्षमता वाले उपकरण मिल सकते हैं, जो उसके संपूर्ण विकास में योगदान देंगे। अगर किसी बच्चे में बहरेपन या फिर सुनने की क्षमता कम होने का पता चलता है तो बीएमसी उपकरणों और दूसरे उपचार विकल्पों की मदद करेगी।

Updated by Aarti tewari

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