बेल के पेड़ के बारे में तो आप जानते ही होंगे। बेल का प्रयोग कई तरह के काम में किया जाता है। अनेक लोग बेल का शर्बत भी बहुत पसंद से पीते हैं। इसके अलावा भी बेल का इस्तेमाल कई कामों में किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार बेल के अनगिनत फायदे हैं जिसके कारण औषधि के रूप इसका प्रयोग किया जाता है।
लेखक- आचार्य बालकृष्ण
बेल कई रोगों की रोकथाम कर सकता है तो कई रोगों को ठीक करने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। आप कफ-वात विकार, बदहजमी, दस्त, मूत्र रोग, पेचिश, डायबिटीज, ल्यूकोरिया में बेल के फायदे ले सकते हैं। इसके अलावा पेट दर्द, ह्रदय विकार, पीलिया, बुखरा, आंखों के रोग आदि में भी बेल के सेवन से लाभ मिलता है। आइए बेल के सभी औषधीय गुणों के बारे में जानते हैं।
बेल क्या है?
बेल बहुत ही पुराना वृक्ष है। भारतीय ग्रंथों में इसे दिव्य वृक्ष कहा गया है। इस वृक्ष में लगे हुए पुराने पीले पड़े हुए फल, एक साल के बाद पुनः हरे हो जाते हैं। इसके पत्तों को तोड़कर रखेंगे तो 6 महीने तक ज्यों के त्यों बने रहते हैं। इस वृक्ष की छाया ठंडक देती है और स्वस्थ बनाती है। बेल का पेड़ मध्यमाकार, और कांटों से युक्त होता है। इसके तने की छाल मुलायम, हल्के भूरे रंग से पीले रंग की होती है। नई शाखाएं हरे रंग की, और टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं। इसका पत्ता हरे रंग का होता है, और पत्तों के आगे का भाग नुकीला और सुगन्धित होता है।
इसके फूल हरे और सफेद रंग के होते हैं। इसके फल गोलाकार, अण्डाकार, भूरे या पीले रंग के होते हैं। फल के छिलके कठोर और चिकने होते हैं। इसके बीज 10-15 के समूह में छोटे, सफेद एवं चिकने होते हैं। बेल के पेड़ में फूल और फलकाल फरवरी से जुलाई तक होता है।
बेल के फायदे
- बेल के फल, के पत्ते और फूल के गुण अनगिनत हैं, आइए सभी के बारे में जानते हैं
सिर दर्द में फायदेमंद बेल का इस्तेमाल
- बेल की सूखी हुई जड़ को थोड़े जल के साथ गाढ़ा पीस लें। इसके पत्ते का पेस्ट बना लें। इसे मस्तक पर लेप करने से सिर दर्द से आराम मिलता है।
- एक कपड़े को बिल्व के पत्ते के रस में डूबोएं। यह पट्टी सिर पर रखने से सिर दर्द में लाभ होगा।
जूं की समस्या में बेल का प्रयोग
- बेल के पके फल को दो भागों में तोड़ लें। इसके अन्दर का मज्जा निकाल लें। एक भाग में तिल का तेल, तथा कपूर डाल लें। दूसरे भाग से पहले वाले को ढक दें। इस तेल को सिर में लगाने से जूं खत्म हो जाता है।
आंखों के रोग में बेल का प्रयोग लाभदायक
- बेल के पत्तों पर घी लगाकर आंखों को सेकें। इसके साथ ही आंखों पर पट्टी बांधें। आप इसके पत्तों के रस को आंखों में डालने से, या इसका लेप लगाने से आंखों के रोग दूर होते हैं। इससे लाभ होता है।
रतौंधी में बेल का उपयोग लाभकारी
- दस ग्राम ताजे बेल के पत्तों को 7 नग काली मिर्च के साथ पीस लें। इसे 100 मिली जल में छान लें। इसमें 25 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर सुबह-शाम पिएं। रात में बेल के पत्ते को जल में भिगो दें। इस जल से सुबह आंखों को धोएं।
- 10 मिली बेल के पत्ते के रस, 6 ग्राम गाय का घी, और 1 ग्राम कपूर को तांबे की कटोरी में इतना रगड़ें कि काला सुरमा बन जाए। इसे आंखों में लगाएं। इसके साथ ही सुबह गौमूत्र से आंखों को धोएं। इससे लाभ होता है।
बहरापन दूर करने के लिए बेल का उपयोग
- बेल के कोमल पत्तों को स्वस्थ गाय के मूत्र में पीस लें। इसमें चार गुना तिल का तेल, तथा 16 गुना बकरी का दूध मिलाकर धीमी आग में पकाएं। इसे रोज कानों में डालने से बहरापन, सनसनाहट (कानों में आवाज आना), कानों की खुश्की, और खुजली आदि समस्याएं दूर होती हैं।
क्षय रोग या टीबी की बीमारी में बेल से फायदा
- बेल की जड़, अड़ूसा के पत्ते तथा नागफनी और थूहर के पके सूखे हुए फल 4-4 भाग लें। इसके साथ ही सोंठ, काली मिर्च व पिप्पली 1-1 भाग लें। इन्हें कूट लें। इसके 20 ग्राम मिश्रण को लेकर आधा ली जल में पकाए। जप पानी एक चौथाई रह जाए तो सुबह और शाम शहद के साथ सेवन कराने से टीबी रोग में लाभ होता है।
ह्रदय रोग में बेल का प्रयोग फायदेमंद
- 5-10 मिली के पत्ते के रस में गाय का घी 5 ग्राम मिलाकर चटायें।
पेट दर्द में बेल का प्रयोग लाभदायक
- 10 ग्राम बेल के पत्ते, तथा 7 नग काली मिर्च पीसकर, उसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर शर्बत बना लें। इसे दिन में 3 बार पिलाएं।
- बेल, एरंड, चित्रक की जड़, और सोंठ को एक साथ कूट लें। इसका काढ़ा बना लें। इसमें थोड़ी सी भुनी हुई हींग, तथा सेंधा नमक 1 ग्राम बुरक लें। 20-25 मिली की मात्रा में पिलाने से पेट दर्द ठीक होता है। इन द्रव्यों का पेस्ट बनाकर गर्म करके पेट पर लगाने से भी लाभ होता है।
शरीर की जलन से राहत पाने के लिए बेल का इस्तेमाल
- 20 ग्राम बेल के पत्ते को 500 मिली जल में 3 घंटे तक डुबोकर रखें। हर 2 घंटे पर 20-20 मिली यह जल पिलाएं। इससे शरीर की जलन ठीक होती है।
- छाती में जलन हो तो पत्तोंं को जल के साथ पीस छान लें। इसमें थोड़ी मिश्री मिलाकर दिन में 3-4 बार पिलाएं।
- 10 मिली बेल के पत्ते रस में काली मिर्च तथा सेंधा नमक 1-1 ग्राम मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करें।
बदहजमी में बेल का सेवन फायदेमंद
- भूख ना लगने, तथा पाचन-शक्ति कमजोर हो जाने पर, बेलगिरी चूर्ण, छोटी पिप्पली, वंशलोचन व मिश्री 2-2 ग्राम लें। इसमें 10 मिली तक अदरक का रस, और थोड़ा जल मिलाकर आग पर पकाएं। गाढ़ा हो जाने पर दिन में 4 बार चटाएं।
- बेलगिरी चूर्ण 100 ग्राम, और अदरक 20 ग्राम को पीस लें। इसमें थोड़ी शक्कर (50 ग्राम), और इलायची मिलाकर चूर्ण कर लें। सुबह-शाम भोजन के बाद आधा चम्मच गुनगुने जल से लें। इससे पाचन ठीक होता है, और भूख बढ़ती है।
- पके हुए बेल फल का सेवन करने से पाचन शक्ति ठीक होती है।
पेचिश में बेल का सेवन लाभदायक (Bael Fruit Benefits to Stop Dysentery in Hindi)
- 10 ग्राम बेलगिरी चूर्ण, 6-6 ग्राम सोंठ चूर्ण, और पुराने गुड़ को खरल कर लें। इसे दिन में तीन या चार बार छाछ के साथ 3 ग्राम की मात्रा में सेवन कराएं। भोजन में केवल छाछ दें।
- बेलगिरी और कुटज की छाल का चूर्ण बना लें। इसे 10 से 20 ग्राम तक रात के समय 150 मिली जल में भिगो लें। सुबह इसे मसलकर छान लें, और पिएं।
- कच्चे बेल को आग में सेंक लें। इसमें 10 से 20 ग्राम गूदे में थोड़ी शक्कर और शहद मिलाकर पेचिश रोग में सेवन कराएं।
दस्त रोकने के लिए बेल का सेवन
- बेल (bael tree) के कच्चे फल को आग में सेंक लें। 10 से 20 ग्राम गूदे को मिश्री के साथ दिन में 3-4 बार खिलाने से दस्त में लाभ होता है।
- 50 ग्राम बेल की सूखी गिरी, तथा 20 ग्राम सफेद कत्थे के महीन चूर्ण में 100 ग्राम मिश्री मिला लें। इसकी 1.5 ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार सेवन करें। इससे दस्त पर रोक लगती है।
- 200 ग्राम बेलगिरी को 4 लीटर जल में पका लें। जब जल 1 लीटर रह जाये तो छान लें। इसमें 100 ग्राम मिश्री मिलाकर बोतल में भरकर रख लें। इसको 10 या 20 मिली की मात्रा में, 500 मिग्रा भुनी हुई सोंठ मिला लें। इसका सेवन करने से, 2 या 3 बार में ही सब प्रकार के दस्त (अगर दस्त बहुत हो रहा हो तो 65 मिग्रा अफीम मिला लें) में लाभ होता है।
- गर्भवती स्त्री को दस्त होने पर 10 ग्राम बेलगिरी के पाउडर को चावल के धोवन के साथ पीस लें। इसमें थोड़ी मिश्री मिला लें। इसे दिन में 2-3 बार देने से लाभ होता है।
- 5 ग्राम बेलगिरी को सौंफ के अर्क में घिसकर, दिन में 3-4 बार देने से बालक को दें। इससे हरे तथा पीले रंगयुक्त दस्त ठीक हो जाते हैं।
- बेलगिरी व पलाश का गोंद लें। इनकी 1-1 ग्राम मात्रा को 2 ग्राम मिश्री के साथ थोड़े जल में खरल कर लें। इसे धीमी आग पर गाढ़ा कर चाटने से दस्त में लाभ होता है।
- बेल का मुरब्बा खिलाने से दस्त में लाभ होता है। पेट के सभी रोगों के लिए बेल का मुरब्बा फायदेमंद है।
- बेल के कच्चे, और साबुत फल को भून लें। इसे छिलके सहित कूटकर रस निकाल लेंं। इसमें मिश्री मिलाकर लेने से पुराना दस्त मिटता है। यह प्रयोग दिन में एक या दो बार लगातार 10-15 दिन तक करें।
- बेलगिरी, कत्था, आम की गुठली की मींगी, ईसबगोल की भूसी, और बादाम की मींगी लें। बराबर मात्रा में सभी सामान लें और इसमें शक्कर या मिश्री के साथ 3-4 चम्मच मिलाकर सेवन करें। इससे दस्त की गंभीर समस्या में लाभ होता है।
- बेलगिरी और आम की गुठली की मींगी को बराबर मात्रा में पीस लें। इसे 2 से 4 ग्राम तक चावल के मांड के साथ, या शीतल जल के साथ सुबह और शाम सेवन करें। दस्त में यह प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली है।
- बेलगिरी के 50 ग्राम गूदे को 20 मिली गुड़ के साथ दिन में तीन बार खाने से पेचिश में लाभ होता है।
- चावल के 20 ग्राम धोवन में बेलगिरी चूर्ण 2 ग्राम, और मुलेठी चूर्ण 1 ग्राम को पीस लें। इसे 3-3 ग्राम शक्कर, और शहद मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन कराने से दस्त में लाभ होता है।
- बेलगिरी और धनिया 1-1 भाग लें। इन्हें दो भाग मिश्री में मिलाकर चूर्ण बना लें। 2-6 ग्राम मात्रा में ताजा जल से सुबह और शाम सेवन करें। इससे दस्त में लाभ होता है।
- कच्चे बेल (bael tree) को कंडे की आग में भूनें। जब छिलका बिल्कुल काला हो जाय, तब भीतर का गूदा निकालकर 10 से 20 ग्राम तक दिन में तीन बार मिश्री मिला सेवन कराएं।
उल्टी में बेल से फायदा
- बेल के पके फल के गूदे को ठंडे जल में मसलकर, छान लें। इसमें मिश्री, इलायची, लौंग, काली मिर्च तथा थोड़ा कपूर मिलाकर शर्बत बना लें। इसे पीने से प्यास, जलन, उल्टी, कब्ज और पाचन विकार ठीक होते हैं। जिन्हें कब्ज की शिकायत हो, वे इसे भोजन के साथ लें।
- 100 ग्राम गूदे को मसल लें। उसमें इमली के पानी के साथ थोड़ी शक्कर या दही के साथ शक्कर मिलाकर पिएं। इससे कब्ज और शरीर की जलन में लाभ होता है।
हैजा या विसूचिका में बेल से लाभ
- आम की मींगी और बेलगिरी को 10-10 ग्राम लेकर कूट लें। इसे 500 मिली जल में पकाएं। 100 मिली शेष रहने पर शहद और मिश्री मिलाकर 5 से 20 मिली तक आवश्यकतानुसार पिलाएं। इससे उल्टी और दस्त में लाभ होता है।
- बेलगिरी और गिलोय (1-4 ग्राम) को कूटकर आधा लीटर जल में पकाएं। 250 मिली शेष रहने पर छानकर थोड़ा-थोड़ा पिलाएं। यदि हैजा गंभीर हो तो इस काढ़ा में जायफल, कपूर, और छुहारा मिलाकर काढ़ा बनाएं। बार-बार थोड़ा-थोड़ा पिलाएं।
जलोदर रोग में बेल से फायदा
- 20-25 मिली बेल के रस में छोटी पिप्पली चूर्ण एक या डेढ़ ग्राम मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
पीलिया और एनीमिया में बेल से लाभ
- 10-30 मिली बेल के पत्ते के रस (Bael juice patanjali) में आधा ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिला लें। सुबह शाम सेवन कराने से पीलिया और एनीमिया रोग में लाभ होता है।
सूजन को कम करने में बेल का इस्तेमाल
- बेल के पत्ते के रस को गर्म कर लेप करने से सूजन में लाभ होता है।
मधुमेह या डायबिटीज में बेल का उपयोग
10-20 ग्राम बेल के ताजे पत्तों (bael leaves) को पीस लें। उसमें 5-7 काली मिर्च भी मिलाकर पानी के साथ सुबह खाली पेट सेवन करें। इससे मधुमेह में लाभ होता है।
- रोज सुबह 10 मिली बिल्व (बेल) के पत्ते के रस का सेवन भी गुणकारी है।
- बेल के पत्ते, हल्दी, गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और आंवला लें। इनकी 6-6 की मात्रा में लेकर कूटें। इन्हें 250 मिली जल में रात को कांच या मिट्टी के बर्तन में भिगो दें। सुबह खूब मसल, छान लें। इसकी 125 मिली मात्रा सुबह और शाम 2-3 माह तक सेवन करें। इससे मधुमेह में लाभ होता है।
- 10-10 नग बेल के पत्ते, और नीम के पत्ते, तथा 5 नग तुलसी के पत्ते को पीसकर गोली बना लें। इसे सुबह रोज जल के साथ सेवन करें।
मूत्र रोग में बेल के सेवन से लाभ
- 10 ग्राम बेलगिरी, तथा 5 ग्राम सोंठ को, कूट कर 400 मिली जल में काढ़ा बना लें। इसे सुबह-शाम सेवन कराने से 5 दिन में मूत्र रोग में लाभ होता है।
बेल के सेवन से ल्यूकोरिया (प्रदर) में
- बेल के पत्ते के रस में शहद मिलाकर सुबह शाम सेवन कराने से ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
फोड़े-फुंसी होने पर बेल का औषधीय गुण फायदेमंद
- बेल की जड़ या लकड़ी को जल में पीसकर उत्पन्न फोड़े-पुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
आग से जलने पर बेल के औषधीय गुण से फायदा
- कीटों के काटने पर या आग से जड़ने पर बेल के ताजे पत्तों के रस को बार-बार लगाने से लाभ होता है।
बेल के गुण से चेचक की जलन से राहत
- चेचक की बीमारी में, जब शरीर में बहुत जलन और बेचैनी हो, तो बिल्व के पत्ते के रस में मिश्री मिलाकर पिलाएं। इसके साथ ही बेल के पत्तोंं का पंखा बनाकर हवा देंं। रोगी को विशेष लाभ मिलता है।
बेल का औषधीय गुण करता है कमजोरी दूर
केवल बेलगिरी के चूर्ण को मिश्री मिले हुए दूध के साथ सेवन करने से खून की कमी, शारीरिक कमजोरी तथा वीर्य की कमजोरी दूर होती है।
- 3 ग्राम बिल्व के पत्तों (bael leaves) के चूर्ण में थोड़ा शहद मिलाकर, सुबह-शाम नियमित सेवन करने से धातु रोग में लाभ होता है।
- 20-25 मिली बिल्व के पत्ते के रस में 6 ग्राम जीरक चूर्ण, 20 ग्राम मिश्री, तथा 100 मिली दूध मिला लें। इसे पीने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।
- बेलगिरी, असगंध, और मिश्री का बराबर मात्रा में चूर्ण बना लें। इसके चौथाई भाग में उत्तम केशर का चूरा मिला लें। 4 ग्राम तक सुबह और शाम खाकर, ऊपर से गर्म दूध पीने से शारीरिक कमजोरी में लाभ होता है।
- बेल को सुखा लें। इसके गूदे का महीन चूर्ण बना लें। इसे थोड़ी मात्रा में रोज सुबह और शाम सेवन करें। इससे कमजोरी दूर होती है।
शरीर की बदबू दूर करने के लिए बेल का उपयोग
- बेल के पत्ते के रस को शरीर में लगाकर स्नान करने से शरीर की बदबू दूर होती है।
बेल के उपयोगी भाग
- बेल के पत्ते
- जड़
- कच्चे फल
- पके फल
- जड़ की छाल
- फल के छिलके
बेल का सेवन कैसे करें?
- 50-100 मिली काढ़ा
- 3-5 ग्राम चूर्ण
- 10-20 मिली रस
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